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इस देश में कई देश रहते है

इस देश में अब कई देश रहते है अपनी अपनी बात सब कहते है  भाषा धर्म जाती प्रान्त के नाम पर झगड़ा है हर गाली देने वाला संविधान को पकड़ा है फिर भी कायर है जो चुप चाप सहते है इस देश में अब कई देश रहते है कुछ लगे है धर्म के परिवर्तन में कुछ लगे है जिहाद के मंथन में कुछ को लगता है धर्म खतरे में है नफरत क्यों आज हर कतरे में है क्यूँ उलटी गंगा में लोग बहते है इस देश में अब कई देश रहते है हरा नारंगी सफ़ेद नीला मिलकर ही तिरंगा बना था ना इन सब रंगों में एक रंग भी हटा दो तो वो तिरंगा कहाँ  भारत को सर्वोपरि रख कर चलना होगा धर्म ज़ात पात भाषा को छोड़ चलना होगा वरना ये भी ज़मीन का टुकड़ा बन रह जायेगा सारे जहाँ से अच्छा फिर कैसे कहलायेगा आओ प्रण करें जो इस देश में रहते है हमें और कुछ नहीं सिर्फ भारतीय कहते है ~अश्क़ जगदलपुरी