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गिरगिट

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मैं गिरगिट मेरा विशिष्ट गुण है प्रतिवेश अनुसार "रंग बदलना" पर हे मानव तुम जब रंग बदलते हो किसी भी प्रतिवेश में कोई भी रंग धारण करते हो मैं गिरगिट होकर भी ये कभी ना कर पाउँगा, इसीलिए हे मानव मैं तुम्हे शाष्टांग दंडवत प्रणाम करता हूँ |

हम आलोचना करेंगे

लूट गये है बाज़ार हम आलोचना करेंगे ठप पड़े है व्यापार हम आलोचना करेंगे आज जो इधर है कल वो उधर होंगे गिरगिटों की है सरकार हम आलोचना करेंगे 5 साल लूटा हमने अब आपकी बारी है आप करना भ्रष्टाचार हम आलोचना करेंगे अपना चूल्हा जलता है ना बस इतना काफ़ी है फिर चाहे जल जाये संसार हम आलोचना करेंगे घोटालों का मौसम है ये काले धन की वर्षा होगी जनता करेगी हाहाकार तो हम आलोचना करेंगे नई दुल्हन की तरह रखा है ध्यान विधायकों का बिक जाये जो कोई गद्दार हम आलोचना करेंगे 'अश्क़' अब झोपड़ियों की भी क़ीमत लाखों में है और नेता जी होटल में 5 स्टार हम आलोचना करेंगे

दिल्ली में - नज़्म

सुना है हवा ख़राब है दिल्ली मे बाकि सब ला जवाब है दिल्ली मे इतनी सिक्योरिटी और इतना ताम झाम कहा के नवाब है दिल्ली मे पतझड़ के मौसम मे झड़ते ही नहीं ऐसे कई गुलाब है दिल्ली मे एक कुर्सी और उसपर बैठा मैं ऐसे कई ख़्वाब है दिल्ली मे देती है आज़ादी टुकड़े टुकड़े कहने की ऐसी कोई किताब है दिल्ली मे ~अश्क़ जगदलपुरी

हमको अब आदत सी हो गयी है -अश्क़ जगदलपुरी

हमको अब आदत सी हो गयी है रास्तो पे गड्ढों की, शराब के अड्डों की, पानी के कमी की, आखों मे नमी की, बिजली के आभाव की, स्वार्थी स्वभाव की संतो के जेल की, नेताओं के बेल की हमको अब आदत सी हो गयी है, शादी पे दहेज़ की, अपनों से परहेज की एसिड से जलने की कलियों को मसलने की फ़ौजी विधवाओं की आतंक के आकाओं की कूड़ेदान मे बच्चियों की और पंखे से लटकी रस्सियों की हमको अब आदत सी हो गयी है देरी से चलती रेलों की भरी हुई जेलों की लोगों से लदी बसों की कटी हुई नसों की मिग 21 के गिरने की जांबाज़ों के मरने की बढ़ते प्रदुषण की और सियासी आरक्षण की हमको अब आदत सी हो गयी है शहीद होते जवानों की टूटते अरमानों की बदबूदार नालों की सरकारी घोटालों की डूबते शहरों की हवस भरे चेहरों की बाबुओं के घमंड की और नेताओं के पाखंड की हमको अब तो आदत सी हो गयी है देश विरोधी नारों की, लम्बी लम्बी कतारों की हिन्दू मुस्लिम दंगों की खादी मे भुजंगो की दशकों चलते मुकदमों की मिडिल क्लास के सदमों की दोपहर मे आराम की और टाट के निचे राम की हमको अब आदत सी हो गयी है ~अश्क़ जगदलपुरी