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कोरोना पर एक कविता

सूने रास्ते सूनी गलियां सूने सूने उपवन है  सूने मंदिर सूने मस्जिद सूने सूने आंगन है  किन्तु केवल कुछ दिनों के लिये ये सूनापन है  सर्वोपरि है घर में रहना अनमोल हर जीवन है  लड़ना ही है तो अपनों से क्यों? अपनों के लिये लड़ना होगा  धन, अन्न, दवा, परिश्रम का महादान करना होगा  भूखों की भूख, दुखियो का दुख इस विकट समय हरना होगा  अल्लाह, ईश्वर सब देवो का अब आवाहन करना होगा  ये कर्म भूमि ये देव भूमि जो भारत वर्ष कहलाती है  ये वेद भूमि ये प्राण दायनी जीवन की ज्योत जलाती है  कोरोना से लड़ने वीरों, तुम्हे ये मात्रभूमि बुलाती है  इसकी रक्षा ही परम धर्म है ये भूमि माँ कहलाती है आओ मिलकर हम इस महामारी पर वार करें  सम्मान करें उन वीरों को जो कोरोना संहार करे कठिनाई के दरिया को दृढ़ निश्चय ही से पार करें  दूरी तन की तन से हो पर मन से सबको प्यार करें आपका अश्क़ जगदलपुरी 

चोपड़ा साहब की प्रेम कथा

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चोपड़ा साहब को सेवा निवृत्त हुए 10 साल हो गये, एक बेटा है, विदेश में रहता है | वह एक सरल ह्रदय के मनुष्य है, चेहरे से तो जैसे करुणा टपकती हो, सभी से प्रेम और सौहार्द रखने में विश्वास करते है | कदकाठी में थोड़े गोलमटोल, बाल चांदी की परत चढ़े हुए, शर्ट और पयजामा पहन कर और साथ में एक छाता लेकर ही कही निकलते | चोपड़ा साहब को जो भी देखता उनमे अपने दादा - नाना की झलक देखता | आज की भाषा में कहें तो वो "क्यूट" है | आज उनकी धर्म पत्नी का जन्मदिन है, चोपड़ा साहब सुबह 5 बजे ही उठ गये, नहा धो कर भगवान के सामने अगरबत्ती जला कर तैयार हो गये, स्कूटर निकाली और चल पड़े बाज़ार की ओर, पहले मिश्रा मिष्ठान भंडार से 1 किलो दूध के पेड़े लिये, उनकी पत्नी के पसंदीदा, फिर एक कच्चा नारियल और दो स्ट्रॉ पैक करवाये और आखिर में एक चॉकलेट लेकर वापस चल पड़े | उनकी स्कूटर के ब्रेक एक अनाथालय के सामने लगे, वहा उन्होंने पेड़े बाटें और हॅसते मुस्कुराते बच्चों से विदा लेकर फिर स्कूटर पे सवार हो गये | अब उनका स्कूटर घर से कुछ दूर वाले पार्क में जाकर रुका, वहा वो अपना सामान लेकर एक बेंच की ओर बढे, उस बेंच पर एक लड़का और एक लड़