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गिरगिट

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मैं गिरगिट मेरा विशिष्ट गुण है प्रतिवेश अनुसार "रंग बदलना" पर हे मानव तुम जब रंग बदलते हो किसी भी प्रतिवेश में कोई भी रंग धारण करते हो मैं गिरगिट होकर भी ये कभी ना कर पाउँगा, इसीलिए हे मानव मैं तुम्हे शाष्टांग दंडवत प्रणाम करता हूँ |

हम आलोचना करेंगे

लूट गये है बाज़ार हम आलोचना करेंगे ठप पड़े है व्यापार हम आलोचना करेंगे आज जो इधर है कल वो उधर होंगे गिरगिटों की है सरकार हम आलोचना करेंगे 5 साल लूटा हमने अब आपकी बारी है आप करना भ्रष्टाचार हम आलोचना करेंगे अपना चूल्हा जलता है ना बस इतना काफ़ी है फिर चाहे जल जाये संसार हम आलोचना करेंगे घोटालों का मौसम है ये काले धन की वर्षा होगी जनता करेगी हाहाकार तो हम आलोचना करेंगे नई दुल्हन की तरह रखा है ध्यान विधायकों का बिक जाये जो कोई गद्दार हम आलोचना करेंगे 'अश्क़' अब झोपड़ियों की भी क़ीमत लाखों में है और नेता जी होटल में 5 स्टार हम आलोचना करेंगे