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अँधेरे

पहले अंधेरो को अँधेरे में रखा गया फिर उजालों पर खूब लिखा गया किताबें जो उम्र भर ना सीखा सकी बुरा वक़्त पल भर में सीखा गया हम तरसते रहे जिनके दीद को वो जाने किस किस को मुँह दिखा गया जिसकी छाँव में बचपन गुज़ारा था वो दरख़्त यहाँ से चला गया मुझे अब नींद ही नहीं आती एक ख्वाब जो नींद उड़ा गया फूल अब यहाँ नहीं खिलते कोई भवरों का दिल दुखा गया 'अश्क़' क्यों हर तरफ हंगामा है क्या कोई हाल ए दिल सुना गया ~अश्क़ जगदलपुरी

क्या - एक ग़ज़ल

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क्या तुम्हारा दिल भी बहुत भारी है क्या तुम्हे भी इश्क़ की बीमारी है क्या नज़रे मिलते ही झुक जाती है क्या उसकी आँखों मे भी बेकरारी है क्या उसकी गली मे रोज़ जाते हो क्या मार खाने की तैयारी है क्या उसके ख़याल मे गुज़रता है सारा दिन क्या तुम्हारी नौकरी सरकारी है क्या कुछ ना कह पाये आज भी उस से क्या कहने को बातें भी बहुत सारी है क्या ख्वाब सारे उसी के आते है क्या नींद मे भी जुस्तजू जारी है क्या दुनिया मे लाना ही एक काम था तेरा क्या उसके आगे भी कोई ज़िम्मेदारी है क्या बेच दी ग़ज़ल चंद सिक्कों की खातिर क्या 'अश्क़' की यही खुद्दारी है ~अश्क़ जगदलपुरी 

What is Ghazal - an introduction by Ashq Jagdalpuri - ग़ज़ल क्या है - एक परिचय

मिले जो किसी से नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई  रहे न अपनी खबर तो समझो ग़ज़ल हुई  उदास बिस्तर की सिलवटें जब तुम्हें चुभें  ना सो सको रात भर तो समझो ग़ज़ल हुई                                  ~ जफ़र गोरखपुरी परिचय - ग़ज़ल शायरी की सब से प्रसिद्ध स्वरुप में से एक है। ग़ज़ल का जन्म अरब देशों में 7वी शताब्दी में हुआ था। पहले ग़ज़ल का कोई व्यग्तिगत स्वरुप नहीं था। ग़ज़ल को कसीदे के शुरुवात में पढ़ा जाता था। कसीदे ज्यादातर राजा महाराजा की शान में कहे जाते थे जिसमे 100 से ज्यादा शेर होते थे। धीरे धीरे ग़ज़ल कसीदे से अलग होकर अपना स्थान अरबी और फ़ारसी साहित्य में बनाने लगी। मुस्लिम शासकों द्वारा इस कला का परिचय भारतीय उप महाद्वीप से कराया गया। 18वी शताब्दी में मीर तक़ी मीर और मिर्ज़ा ग़ालिब जैसे शायरों ने उर्दू ग़ज़ल की इस कला को इतनी उचाईयों तक पंहुचा दिया की आज तक लोग इनके शेर आम बोल चाल में इस्तेमाल करते है। जैसे ग़ालिब का ये शेर   वो आये घर में हमारे ख़ुदा की कुदरत है  कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते है                                      ~ मिर्ज़ा ग़ालिब  या मीर तक़ी मीर का ये शेर      इब्तिदा-ए -

Chidiya - A peom for daughters

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                चिड़िया पल भर में रोती पल भर में वो हसती है मेरे घर में एक नन्ही चिड़िया बसती है एक उसकी मुस्कान ही तो है जिसके आगे ये सारी दुनिया सस्ती है घर मेरा अब घर जैसा नहीं लगता लगता है जैसे कोई खिलोनो की बस्ती है ठुमकती इठलाती नाचती मचलती भी मेरे आंगन में घटा छम छम कर के बरसती है लगता है ऐसा जैसे सारी दुनिया सिमट गयी 'अश्क़' जब मुझको वो नन्ही बाँहों में कसती है अश्क़ जगदलपुरी