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अँधेरे

पहले अंधेरो को अँधेरे में रखा गया फिर उजालों पर खूब लिखा गया किताबें जो उम्र भर ना सीखा सकी बुरा वक़्त पल भर में सीखा गया हम तरसते रहे जिनके दीद को वो जाने किस किस को मुँह दिखा ...

फिर वही

फिर वही दिन वही सुबह वही ज़िंदगानी फिर वही शब वही जाम वही आँखों में पानी हम इस दुनिया में जी लगाये तो कैसे फिर वही पाप वही ज़ुल्म वही बेईमानी अब तो मेरे ओहदे से परे कर मुझको फिर ...

लोकतंत्र का उपहास

मज़ाक बनाया लोकतंत्र का राजनीती की हो रही ऐसी की तैसी है अब किस मुँह से कहें हम के ये दुनिया की सब से बड़ी डेमोक्रेसी है वोट लिया जिसे कोस कोस कर आज उसको साथ बैठाया है शकुनि को भ...

नारी

पापा ऑफिस से आये तो माँ को भूल गयी प्यार हुआ तो माँ बाप को भूल गयी शादी हुई तो सहेलियों को भूल गयी बच्चे हुए तो पति को भूल गयी बच्चे बड़े हुए तो मुझको भूल गये मैं बूढ़ी हुई तो दुनि...

हमको अब आदत सी हो गयी है -अश्क़ जगदलपुरी

हमको अब आदत सी हो गयी है रास्तो पे गड्ढों की, शराब के अड्डों की, पानी के कमी की, आखों मे नमी की, बिजली के आभाव की, स्वार्थी स्वभाव की संतो के जेल की, नेताओं के बेल की हमको अब आदत सी हो गयी है, शादी पे दहेज़ की, अपनों से परहेज की एसिड से जलने की कलियों को मसलने की फ़ौजी विधवाओं की आतंक के आकाओं की कूड़ेदान मे बच्चियों की और पंखे से लटकी रस्सियों की हमको अब आदत सी हो गयी है देरी से चलती रेलों की भरी हुई जेलों की लोगों से लदी बसों की कटी हुई नसों की मिग 21 के गिरने की जांबाज़ों के मरने की बढ़ते प्रदुषण की और सियासी आरक्षण की हमको अब आदत सी हो गयी है शहीद होते जवानों की टूटते अरमानों की बदबूदार नालों की सरकारी घोटालों की डूबते शहरों की हवस भरे चेहरों की बाबुओं के घमंड की और नेताओं के पाखंड की हमको अब तो आदत सी हो गयी है देश विरोधी नारों की, लम्बी लम्बी कतारों की हिन्दू मुस्लिम दंगों की खादी मे भुजंगो की दशकों चलते मुकदमों की मिडिल क्लास के सदमों की दोपहर मे आराम की और टाट के निचे राम की हमको अब आदत सी हो गयी है ~अश्क़ जगदलपुरी

What is Ghazal - an introduction by Ashq Jagdalpuri - ग़ज़ल क्या है - एक परिचय

मिले जो किसी से नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई  रहे न अपनी खबर तो समझो ग़ज़ल हुई  उदास बिस्तर की सिलवटें जब तुम्हें चुभें  ना सो सको रात भर तो समझो ग़ज़ल हुई                                  ~ जफ़र गोरखपुरी परिचय - ग़ज़ल शायरी की सब से प्रसिद्ध स्वरुप में से एक है। ग़ज़ल का जन्म अरब देशों में 7वी शताब्दी में हुआ था। पहले ग़ज़ल का कोई व्यग्तिगत स्वरुप नहीं था। ग़ज़ल को कसीदे के शुरुवात में पढ़ा जाता था। कसीदे ज्यादातर राजा महाराजा की शान में कहे जाते थे जिसमे 100 से ज्यादा शेर होते थे। धीरे धीरे ग़ज़ल कसीदे से अलग होकर अपना स्थान अरबी और फ़ारसी साहित्य में बनाने लगी। मुस्लिम शासकों द्वारा इस कला का परिचय भारतीय उप महाद्वीप से कराया गया। 18वी शताब्दी में मीर तक़ी मीर और मिर्ज़ा ग़ालिब जैसे शायरों ने उर्दू ग़ज़ल की इस कला को इतनी उचाईयों तक पंहुचा दिया की आज तक लोग इनके शेर आम बोल चाल में इस्तेमाल करते है। जैसे ग़ालिब का ये शेर   वो आये घर में हमारे ख़ुदा की कुदरत है  कभी हम उन...

Chidiya - A peom for daughters

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                चिड़िया पल भर में रोती पल भर में वो हसती है मेरे घर में एक नन्ही चिड़िया बसती है एक उसकी मुस्कान ही तो है जिसके आगे ये सारी दुनिया सस्ती है घर मेरा अब घर जैसा नहीं लगता लगता है जैसे कोई खिलोनो की बस्ती है ठुमकती इठलाती नाचती मचलती भी मेरे आंगन में घटा छम छम कर के बरसती है लगता है ऐसा जैसे सारी दुनिया सिमट गयी 'अश्क़' जब मुझको वो नन्ही बाँहों में कसती है अश्क़ जगदलपुरी