मिले जो किसी से नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई रहे न अपनी खबर तो समझो ग़ज़ल हुई उदास बिस्तर की सिलवटें जब तुम्हें चुभें ना सो सको रात भर तो समझो ग़ज़ल हुई ~ जफ़र गोरखपुरी परिचय - ग़ज़ल शायरी की सब से प्रसिद्ध स्वरुप में से एक है। ग़ज़ल का जन्म अरब देशों में 7वी शताब्दी में हुआ था। पहले ग़ज़ल का कोई व्यग्तिगत स्वरुप नहीं था। ग़ज़ल को कसीदे के शुरुवात में पढ़ा जाता था। कसीदे ज्यादातर राजा महाराजा की शान में कहे जाते थे जिसमे 100 से ज्यादा शेर होते थे। धीरे धीरे ग़ज़ल कसीदे से अलग होकर अपना स्थान अरबी और फ़ारसी साहित्य में बनाने लगी। मुस्लिम शासकों द्वारा इस कला का परिचय भारतीय उप महाद्वीप से कराया गया। 18वी शताब्दी में मीर तक़ी मीर और मिर्ज़ा ग़ालिब जैसे शायरों ने उर्दू ग़ज़ल की इस कला को इतनी उचाईयों तक पंहुचा दिया की आज तक लोग इनके शेर आम बोल चाल में इस्तेमाल करते है। जैसे ग़ालिब का ये शेर वो आये घर में हमारे ख़ुदा की कुदरत है कभी हम उन...