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शिरीन फरहाद और ग़ालिब

तेशे बग़ैर मर न सका कोहकन 'असद' सरगश्ता-ए-ख़ुमार-ए-रुसूम-ओ-क़ुयूद था मिर्ज़ा ग़ालिब के इस शे'र के पीछे एक कहानी छुपी है | आइये पहले इसका शाब्दिक अर्थ जान लेते है - तेशे का अर्थ होता है पत्थर तोड़ने का औज़ार, कोहकन का अर्थ है पत्थर तोड़ने वाला व्यक्ति और असद ग़ालिब का ही दूसरा उपनाम है | पहले मिसरे मे ग़ालिब खुद से ही कह रहे है की पत्थर तोड़ने वाला बिना पत्थर तोड़ने के औज़ार का सहारा लिये मर ना सका | आइये अब दूसरे मिसरे से ये समझें की ग़ालिब ऐसा क्यों कह रहे है | दूसरा मिसरा ऐसा है की 'था' के अलवा कुछ समझना मुश्किल मालूम होता है | सरगश्ता का अर्थ है भटका हुआ या सिरफिरा, खुमार का अर्थ है नशा या किसी के वश में, रुसुम का अर्थ है रस्म या रीती रिवाज़, और कुयूद का अर्थ है कैद में | इस मिसरे का अर्थ ये निकलता है की सरफिरा यहा के रीती रिवाज़ के नशे से बंधा हुआ या उनके कैद में था | अब दोनों मिसरो को जोड़ कर हिंदी का शाब्दिक अर्थ यह निकल कर आता है की - पत्थर तोड़ने वाला व्यक्ति बिना पत्थर तोड़ने के औज़ार के मर ना सका, वो सरफिरा भी यहाँ के रीती रिवाजों के नशे में कैद था | अब इस शेर का अर्थ

What is Ghazal - an introduction by Ashq Jagdalpuri - ग़ज़ल क्या है - एक परिचय

मिले जो किसी से नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई  रहे न अपनी खबर तो समझो ग़ज़ल हुई  उदास बिस्तर की सिलवटें जब तुम्हें चुभें  ना सो सको रात भर तो समझो ग़ज़ल हुई                                  ~ जफ़र गोरखपुरी परिचय - ग़ज़ल शायरी की सब से प्रसिद्ध स्वरुप में से एक है। ग़ज़ल का जन्म अरब देशों में 7वी शताब्दी में हुआ था। पहले ग़ज़ल का कोई व्यग्तिगत स्वरुप नहीं था। ग़ज़ल को कसीदे के शुरुवात में पढ़ा जाता था। कसीदे ज्यादातर राजा महाराजा की शान में कहे जाते थे जिसमे 100 से ज्यादा शेर होते थे। धीरे धीरे ग़ज़ल कसीदे से अलग होकर अपना स्थान अरबी और फ़ारसी साहित्य में बनाने लगी। मुस्लिम शासकों द्वारा इस कला का परिचय भारतीय उप महाद्वीप से कराया गया। 18वी शताब्दी में मीर तक़ी मीर और मिर्ज़ा ग़ालिब जैसे शायरों ने उर्दू ग़ज़ल की इस कला को इतनी उचाईयों तक पंहुचा दिया की आज तक लोग इनके शेर आम बोल चाल में इस्तेमाल करते है। जैसे ग़ालिब का ये शेर   वो आये घर में हमारे ख़ुदा की कुदरत है  कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते है                                      ~ मिर्ज़ा ग़ालिब  या मीर तक़ी मीर का ये शेर      इब्तिदा-ए -