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फिर वही

फिर वही दिन वही सुबह वही ज़िंदगानी फिर वही शब वही जाम वही आँखों में पानी हम इस दुनिया में जी लगाये तो कैसे फिर वही पाप वही ज़ुल्म वही बेईमानी अब तो मेरे ओहदे से परे कर मुझको फिर वही जी वही हुज़ूर वही कद्रदानी हमें उमीद थी तुम्हारी ताजपोशी से पर फिर वही गुरुर वही नशा वही मनमानी अब कहने को 'अश्क़' बाकि है क्या फिर वही गीत वही ग़ज़ल वही कहानी