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शिरीन फरहाद और ग़ालिब

तेशे बग़ैर मर न सका कोहकन 'असद' सरगश्ता-ए-ख़ुमार-ए-रुसूम-ओ-क़ुयूद था मिर्ज़ा ग़ालिब के इस शे'र के पीछे एक कहानी छुपी है | आइये पहले इसका शाब्दिक अर्थ जान लेते है - तेशे का अर्थ होता है पत्थर तोड़ने का औज़ार, कोहकन का अर्थ है पत्थर तोड़ने वाला व्यक्ति और असद ग़ालिब का ही दूसरा उपनाम है | पहले मिसरे मे ग़ालिब खुद से ही कह रहे है की पत्थर तोड़ने वाला बिना पत्थर तोड़ने के औज़ार का सहारा लिये मर ना सका | आइये अब दूसरे मिसरे से ये समझें की ग़ालिब ऐसा क्यों कह रहे है | दूसरा मिसरा ऐसा है की 'था' के अलवा कुछ समझना मुश्किल मालूम होता है | सरगश्ता का अर्थ है भटका हुआ या सिरफिरा, खुमार का अर्थ है नशा या किसी के वश में, रुसुम का अर्थ है रस्म या रीती रिवाज़, और कुयूद का अर्थ है कैद में | इस मिसरे का अर्थ ये निकलता है की सरफिरा यहा के रीती रिवाज़ के नशे से बंधा हुआ या उनके कैद में था | अब दोनों मिसरो को जोड़ कर हिंदी का शाब्दिक अर्थ यह निकल कर आता है की - पत्थर तोड़ने वाला व्यक्ति बिना पत्थर तोड़ने के औज़ार के मर ना सका, वो सरफिरा भी यहाँ के रीती रिवाजों के नशे में कैद था | अब इस शेर का अर्थ

ज़हर बह रहा है

ज़हर बह रहा है पानी में हवा में नवजात ज़हर पी रहे है माँ के स्तनों से खेतोँ में अब आग ही आग है हवा में अब स्मॉग ही स्मॉग है नदी में अब झाग ही झाग है आओ आवाहन करें इसी झाग में डूब मरे ~ अश्क़ जगदलपुरी

क्या - एक ग़ज़ल

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क्या तुम्हारा दिल भी बहुत भारी है क्या तुम्हे भी इश्क़ की बीमारी है क्या नज़रे मिलते ही झुक जाती है क्या उसकी आँखों मे भी बेकरारी है क्या उसकी गली मे रोज़ जाते हो क्या मार खाने की तैयारी है क्या उसके ख़याल मे गुज़रता है सारा दिन क्या तुम्हारी नौकरी सरकारी है क्या कुछ ना कह पाये आज भी उस से क्या कहने को बातें भी बहुत सारी है क्या ख्वाब सारे उसी के आते है क्या नींद मे भी जुस्तजू जारी है क्या दुनिया मे लाना ही एक काम था तेरा क्या उसके आगे भी कोई ज़िम्मेदारी है क्या बेच दी ग़ज़ल चंद सिक्कों की खातिर क्या 'अश्क़' की यही खुद्दारी है ~अश्क़ जगदलपुरी 

Zaruri hai - Nazm on Life

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                 ज़रूरी है  पानी को बहते रहना ज़रूरी है कहानी को कहते रहना ज़रूरी है  हाल जो कुछ भी हो आदमी का ज़िन्दगी को जीते रहना ज़रूरी है बुढ़ापा आगया तो क्या मर जाये हम तुम्हारे सिवा अब किधर जाये दवा बेअसर मालूम हो तब भी दवा को पीते  रहना ज़रूरी है आदमी को जानवर से कम प्यार दिया धीरे धीरे तुमने उसे मार दिया नमक लिए फिरते है लोग आँखों मे जख्म को सीते रहना ज़रूरी है पुरानी बातों को कब तक याद रखे अपने घरोंदे को क्यूँ बर्बाद रखे कल जो आएगा उसकी ख़ुशी की खातिर जो बीत गया उसे बीते रहना ज़रूरी है अश्क़ जगदलपुरी