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नवंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गिरगिट

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मैं गिरगिट मेरा विशिष्ट गुण है प्रतिवेश अनुसार "रंग बदलना" पर हे मानव तुम जब रंग बदलते हो किसी भी प्रतिवेश में कोई भी रंग धारण करते हो मैं गिरगिट होकर भी ये कभी ना कर पाउँगा, इसीलिए हे मानव मैं तुम्हे शाष्टांग दंडवत प्रणाम करता हूँ |

हम आलोचना करेंगे

लूट गये है बाज़ार हम आलोचना करेंगे ठप पड़े है व्यापार हम आलोचना करेंगे आज जो इधर है कल वो उधर होंगे गिरगिटों की है सरकार हम आलोचना करेंगे 5 साल लूटा हमने अब आपकी बारी है आप करना भ्रष्टाचार हम आलोचना करेंगे अपना चूल्हा जलता है ना बस इतना काफ़ी है फिर चाहे जल जाये संसार हम आलोचना करेंगे घोटालों का मौसम है ये काले धन की वर्षा होगी जनता करेगी हाहाकार तो हम आलोचना करेंगे नई दुल्हन की तरह रखा है ध्यान विधायकों का बिक जाये जो कोई गद्दार हम आलोचना करेंगे 'अश्क़' अब झोपड़ियों की भी क़ीमत लाखों में है और नेता जी होटल में 5 स्टार हम आलोचना करेंगे

लोकतंत्र का उपहास

मज़ाक बनाया लोकतंत्र का राजनीती की हो रही ऐसी की तैसी है अब किस मुँह से कहें हम के ये दुनिया की सब से बड़ी डेमोक्रेसी है वोट लिया जिसे कोस कोस कर आज उसको साथ बैठाया है शकुनि को भी शर्म आ जाये ऐसा जाल बिछाया है जनता का उपहास है ये गणतंत्र का परिहास है ये विचारों और मूल्यों का घात हुआ विश्वास है ये बिकाऊ हो तो रहो बाज़ार में संसद तो मंदिर है लोकतंत्र का अब आये कोई ऐसा जन नेता जो समझें मतलब जनतंत्र का अब जनता को जगाना है क्रांति का गीत गाना है चोर उचक्को को संसद नहीं सीधे जेल पहुंचाना है ~अश्क़ जगदलपुरी

ज़हर बह रहा है

ज़हर बह रहा है पानी में हवा में नवजात ज़हर पी रहे है माँ के स्तनों से खेतोँ में अब आग ही आग है हवा में अब स्मॉग ही स्मॉग है नदी में अब झाग ही झाग है आओ आवाहन करें इसी झाग में डूब मरे ~ अश्क़ जगदलपुरी

दिल्ली में - नज़्म

सुना है हवा ख़राब है दिल्ली मे बाकि सब ला जवाब है दिल्ली मे इतनी सिक्योरिटी और इतना ताम झाम कहा के नवाब है दिल्ली मे पतझड़ के मौसम मे झड़ते ही नहीं ऐसे कई गुलाब है दिल्ली मे एक कुर्सी और उसपर बैठा मैं ऐसे कई ख़्वाब है दिल्ली मे देती है आज़ादी टुकड़े टुकड़े कहने की ऐसी कोई किताब है दिल्ली मे ~अश्क़ जगदलपुरी