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लोकतंत्र का उपहास

मज़ाक बनाया लोकतंत्र का राजनीती की हो रही ऐसी की तैसी है अब किस मुँह से कहें हम के ये दुनिया की सब से बड़ी डेमोक्रेसी है वोट लिया जिसे कोस कोस कर आज उसको साथ बैठाया है शकुनि को भी शर्म आ जाये ऐसा जाल बिछाया है जनता का उपहास है ये गणतंत्र का परिहास है ये विचारों और मूल्यों का घात हुआ विश्वास है ये बिकाऊ हो तो रहो बाज़ार में संसद तो मंदिर है लोकतंत्र का अब आये कोई ऐसा जन नेता जो समझें मतलब जनतंत्र का अब जनता को जगाना है क्रांति का गीत गाना है चोर उचक्को को संसद नहीं सीधे जेल पहुंचाना है ~अश्क़ जगदलपुरी