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कोरोना पर एक कविता

सूने रास्ते सूनी गलियां सूने सूने उपवन है  सूने मंदिर सूने मस्जिद सूने सूने आंगन है  किन्तु केवल कुछ दिनों के लिये ये सूनापन है  सर्वोपरि है घर में रहना अनमोल हर जीवन है  लड़ना ही है तो अपनों से क्यों? अपनों के लिये लड़ना होगा  धन, अन्न, दवा, परिश्रम का महादान करना होगा  भूखों की भूख, दुखियो का दुख इस विकट समय हरना होगा  अल्लाह, ईश्वर सब देवो का अब आवाहन करना होगा  ये कर्म भूमि ये देव भूमि जो भारत वर्ष कहलाती है  ये वेद भूमि ये प्राण दायनी जीवन की ज्योत जलाती है  कोरोना से लड़ने वीरों, तुम्हे ये मात्रभूमि बुलाती है  इसकी रक्षा ही परम धर्म है ये भूमि माँ कहलाती है आओ मिलकर हम इस महामारी पर वार करें  सम्मान करें उन वीरों को जो कोरोना संहार करे कठिनाई के दरिया को दृढ़ निश्चय ही से पार करें  दूरी तन की तन से हो पर मन से सबको प्यार करें आपका अश्क़ जगदलपुरी 

Chidiya - A peom for daughters

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                चिड़िया पल भर में रोती पल भर में वो हसती है मेरे घर में एक नन्ही चिड़िया बसती है एक उसकी मुस्कान ही तो है जिसके आगे ये सारी दुनिया सस्ती है घर मेरा अब घर जैसा नहीं लगता लगता है जैसे कोई खिलोनो की बस्ती है ठुमकती इठलाती नाचती मचलती भी मेरे आंगन में घटा छम छम कर के बरसती है लगता है ऐसा जैसे सारी दुनिया सिमट गयी 'अश्क़' जब मुझको वो नन्ही बाँहों में कसती है अश्क़ जगदलपुरी