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गिरगिट

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मैं गिरगिट मेरा विशिष्ट गुण है प्रतिवेश अनुसार "रंग बदलना" पर हे मानव तुम जब रंग बदलते हो किसी भी प्रतिवेश में कोई भी रंग धारण करते हो मैं गिरगिट होकर भी ये कभी ना कर पाउँगा, इसीलिए हे मानव मैं तुम्हे शाष्टांग दंडवत प्रणाम करता हूँ |

नारी

पापा ऑफिस से आये तो माँ को भूल गयी प्यार हुआ तो माँ बाप को भूल गयी शादी हुई तो सहेलियों को भूल गयी बच्चे हुए तो पति को भूल गयी बच्चे बड़े हुए तो मुझको भूल गये मैं बूढ़ी हुई तो दुनिया मुझे भूल गयी इसी भूल भुलैय्या मे हर नारी जी रही है ~अश्क़ जगदलपुरी