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अँधेरे

पहले अंधेरो को अँधेरे में रखा गया फिर उजालों पर खूब लिखा गया किताबें जो उम्र भर ना सीखा सकी बुरा वक़्त पल भर में सीखा गया हम तरसते रहे जिनके दीद को वो जाने किस किस को मुँह दिखा गया जिसकी छाँव में बचपन गुज़ारा था वो दरख़्त यहाँ से चला गया मुझे अब नींद ही नहीं आती एक ख्वाब जो नींद उड़ा गया फूल अब यहाँ नहीं खिलते कोई भवरों का दिल दुखा गया 'अश्क़' क्यों हर तरफ हंगामा है क्या कोई हाल ए दिल सुना गया ~अश्क़ जगदलपुरी

हिन्दू मुसलमान

क्या खुदा ने ही ये इंसान बनाया है? मुझे हिन्दू तुम्हे मुस्लमान बनाया है? अगर ऐसा होता,  तो चाँद तारे भी मज़हबी होते            वो भी आपस में लड़ते वहा भी दंगे होते अगर ऐसा होता,  तो जानवरों का भी धर्म होता             बकरी और भेड़ों का खूब झगड़ा होता अगर ऐसा होता,  तो पेड़ो की भी जाती होती        तितली कुछ फूलों को कभी भी ना छूती अगर ऐसा होता,  तो मछलिया भी इतराती पानी में भी वो अपना अलग बसेरा बनाती  मगर ऐसा नहीं है, मगर ऐसा नहीं है ! मैं भी सही नहीं हूँ तू भी सही नहीं है ! तो आओ अब हम पहले अच्छे इंसान बने फिर गर ज़रूरत हो तो हिन्दू बने मुस्लमान बने ~अश्क़ जगदलपुरी

कब

एक गांव में एक घर था | उस घर में बाबूलाल अपने 6 बेटों के साथ रहते थे | उनके पड़ोस के घर में पप्पूलाल रहते थे उनके 3 बेटे थे | पप्पूलाल जी का बड़ा बेटा कल्लन अक्सर अपने भाइयो को बेरहमी से मारता पीटता था | अक्सर बाबूलाल पड़ोस में हो रहे लड़ाई झगड़े से व्यथित रहते थे | बाबूलाल के मंझले बेटे छुट्टन की कल्लन से दोस्ती थी | दोनों गहरे मित्र थे | एक शाम कल्लन अपने भाइयो को बुरी तरह पिट रहा था, बाबूलाल से रहा ना गया, उसने अपने बड़े बेटे लल्लन से कहा की जाओ और पप्पूलाल के सभी बेटों से कहो वो हमारे घर आकर रहे, कल्लन को छोड़ कर सभी का यहाँ स्वागत है | इस पर छुट्टन को गुस्सा आगया, उसने बाबूलाल से कहा आप कल्लन के साथ अन्याय कर रहे है, आपको बुलाना है तो कल्लन को भी बुलाये ! बाबूलाल ने छुट्टन को समझाया की वो कल्लन को यहाँ बुलाएंगे तो वो यहाँ भी बाकियों को मरेगा पिटेगा इस से अच्छा है की कल्लन को छोड़ कर बाकियों को बुलाया जाए |ईस पर छुट्टन को गुस्सा आया उसने बाहर ख़डी बाबूलाल की मोटरसाइकिल में आग लगा दी, घर की चीज़े फेंक दी, और नारे लगाने लगा "लेके रहेंगे आज़ादी" | बाबूलाल ने पुलिस को फ़ोन किया, पुलिस ने

शिरीन फरहाद और ग़ालिब

तेशे बग़ैर मर न सका कोहकन 'असद' सरगश्ता-ए-ख़ुमार-ए-रुसूम-ओ-क़ुयूद था मिर्ज़ा ग़ालिब के इस शे'र के पीछे एक कहानी छुपी है | आइये पहले इसका शाब्दिक अर्थ जान लेते है - तेशे का अर्थ होता है पत्थर तोड़ने का औज़ार, कोहकन का अर्थ है पत्थर तोड़ने वाला व्यक्ति और असद ग़ालिब का ही दूसरा उपनाम है | पहले मिसरे मे ग़ालिब खुद से ही कह रहे है की पत्थर तोड़ने वाला बिना पत्थर तोड़ने के औज़ार का सहारा लिये मर ना सका | आइये अब दूसरे मिसरे से ये समझें की ग़ालिब ऐसा क्यों कह रहे है | दूसरा मिसरा ऐसा है की 'था' के अलवा कुछ समझना मुश्किल मालूम होता है | सरगश्ता का अर्थ है भटका हुआ या सिरफिरा, खुमार का अर्थ है नशा या किसी के वश में, रुसुम का अर्थ है रस्म या रीती रिवाज़, और कुयूद का अर्थ है कैद में | इस मिसरे का अर्थ ये निकलता है की सरफिरा यहा के रीती रिवाज़ के नशे से बंधा हुआ या उनके कैद में था | अब दोनों मिसरो को जोड़ कर हिंदी का शाब्दिक अर्थ यह निकल कर आता है की - पत्थर तोड़ने वाला व्यक्ति बिना पत्थर तोड़ने के औज़ार के मर ना सका, वो सरफिरा भी यहाँ के रीती रिवाजों के नशे में कैद था | अब इस शेर का अर्थ

कम्बख्त इश्क़

ठण्ड के दिन थे, सुबह के 9 बजे थे, कोहरा धीरे धीरे छट रहा था, विक्रम अपनी छत पर व्यायाम कर रहा था, वह पसीने से तर था, तभी सामने की छत पे पायल अपने बाल सुखाने पहुंची, हाँथ में एक कागज़ था जो उसने एक पत्थर पे लपेट कर विक्रम की छत पर फेक दिया, विक्रम ने मुस्कुराते हुए कागज़ उठाया, लिखा था- 'पुल के पास वाले मंदिर में शाम 6 बजे मिलना' | शाम के 6 बजे थे, मंदिर में एक दिया जल रहा था, सूर्य अस्त हो चूका था, हलकी सी रौशनी अभी भी आसमान में जुंझ रही थी, विक्रम पहले ही मंदिर में पहुंच चुका था, तभी मंदिर के द्वार से पायल ने प्रवेश किया, हलकी रौशनी में पायल का चेहरा जैसे और खिल रहा था, विक्रम को देख कर थोड़ी से शर्म से पायल की आंखे नीची हों गयी, फिर दिल ने कुछ ज़िद दिखाई तो आंखे ऊपर कर सीधे विक्रम की आँखों से जा लड़ी, पायल उसी अल्हड़ मिजाज़ी और हलकी सी बेशर्मी से विक्रम को निहारती हुई उसके पास जाके बैठ गयी | चिड़ियों की चहचहाट कम होने लगी थी, मंदिर की घंटियों की ध्वनि रह-रह कर आरही थी, तभी पायल ने बात शुरू की - कल मुझे लड़के वाले देखने आरहे है, अब तक 3-4 लड़को को मना कर चुकी हूँ इस बार मना करुँगी त

फिर वही

फिर वही दिन वही सुबह वही ज़िंदगानी फिर वही शब वही जाम वही आँखों में पानी हम इस दुनिया में जी लगाये तो कैसे फिर वही पाप वही ज़ुल्म वही बेईमानी अब तो मेरे ओहदे से परे कर मुझको फिर वही जी वही हुज़ूर वही कद्रदानी हमें उमीद थी तुम्हारी ताजपोशी से पर फिर वही गुरुर वही नशा वही मनमानी अब कहने को 'अश्क़' बाकि है क्या फिर वही गीत वही ग़ज़ल वही कहानी