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नई हिंदी कहानी : मुफ्त के फूल

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एक शाम मैं फूल लेने बाज़ार गया, अक्सर 2-3 दिन में एक बार चले जाया करता हूँ | मैं हमेशा एक ही दुकान से फूल लेता हूँ क्योंकि वहाँ अलग-अलग प्रकार के फूल सही क़ीमत में मिल जाया करते हैं | उस दिन मैने ऐसा ही किया, उस दुक़ान से फूल लिये और कुछ छोटे मोटे समान लेने के लिये आगे बढ़ गया | शाम का समय था अंधेरा हो चला था स्ट्रीट लाइट्स जला दी गयी थी | थोड़ा आगे बढ़ा था की मेरी नज़र एक फूल बेचती हुई बुज़ुर्ग महिला  पर पड़ी, वो एक स्ट्रीट लाइट के नीचे बोरा बिछा कर फूल बेच रही थी | उसके पास बहुत थोड़े से ही फूल थे | प्लास्टिक की छोटी थैलियों में फूल भर कर उसने सामने रख दिये थे, कुल चार ही थैलियां थी | वैसे तो मैं ने फूल खरीद लिये थे पर मुझे उस महिला पर दया आयी | मैं ने सोचा इस महिला से एक थैली फूल खरीद कर उसका कुछ भला कर दिया जाये | मैं उसके पास पहुँचा और उससे पूछा "अम्मा फूल कैसे दिये ? "  "10 रुपये की एक थैली है" मैं ने कहा "ठीक है एक थैली दे दो " यह कह कर मैं ने दस रुपये निकले और उस महिला को दे दिये |    मेरे मन में ये संतोष था की कम से कम आज किसी गरीब की कोई मदद की है | मुझे न

कम्बख्त इश्क़

ठण्ड के दिन थे, सुबह के 9 बजे थे, कोहरा धीरे धीरे छट रहा था, विक्रम अपनी छत पर व्यायाम कर रहा था, वह पसीने से तर था, तभी सामने की छत पे पायल अपने बाल सुखाने पहुंची, हाँथ में एक कागज़ था जो उसने एक पत्थर पे लपेट कर विक्रम की छत पर फेक दिया, विक्रम ने मुस्कुराते हुए कागज़ उठाया, लिखा था- 'पुल के पास वाले मंदिर में शाम 6 बजे मिलना' | शाम के 6 बजे थे, मंदिर में एक दिया जल रहा था, सूर्य अस्त हो चूका था, हलकी सी रौशनी अभी भी आसमान में जुंझ रही थी, विक्रम पहले ही मंदिर में पहुंच चुका था, तभी मंदिर के द्वार से पायल ने प्रवेश किया, हलकी रौशनी में पायल का चेहरा जैसे और खिल रहा था, विक्रम को देख कर थोड़ी से शर्म से पायल की आंखे नीची हों गयी, फिर दिल ने कुछ ज़िद दिखाई तो आंखे ऊपर कर सीधे विक्रम की आँखों से जा लड़ी, पायल उसी अल्हड़ मिजाज़ी और हलकी सी बेशर्मी से विक्रम को निहारती हुई उसके पास जाके बैठ गयी | चिड़ियों की चहचहाट कम होने लगी थी, मंदिर की घंटियों की ध्वनि रह-रह कर आरही थी, तभी पायल ने बात शुरू की - कल मुझे लड़के वाले देखने आरहे है, अब तक 3-4 लड़को को मना कर चुकी हूँ इस बार मना करुँगी त