गिरगिट

मैं गिरगिट
मेरा विशिष्ट गुण है
प्रतिवेश अनुसार
"रंग बदलना"
पर हे मानव
तुम जब रंग बदलते हो
किसी भी प्रतिवेश में
कोई भी रंग धारण करते हो
मैं गिरगिट होकर भी
ये कभी ना कर पाउँगा,
इसीलिए हे मानव
मैं तुम्हे शाष्टांग दंडवत
प्रणाम करता हूँ |

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शिरीन फरहाद और ग़ालिब

नारी

दिल्ली में - नज़्म