शिरीन फरहाद और ग़ालिब

तेशे बग़ैर मर न सका कोहकन 'असद'
सरगश्ता-ए-ख़ुमार-ए-रुसूम-ओ-क़ुयूद था

मिर्ज़ा ग़ालिब के इस शे'र के पीछे एक कहानी छुपी है | आइये पहले इसका शाब्दिक अर्थ जान लेते है -

तेशे का अर्थ होता है पत्थर तोड़ने का औज़ार, कोहकन का अर्थ है पत्थर तोड़ने वाला व्यक्ति और असद ग़ालिब का ही दूसरा उपनाम है | पहले मिसरे मे ग़ालिब खुद से ही कह रहे है की पत्थर तोड़ने वाला बिना पत्थर तोड़ने के औज़ार का सहारा लिये मर ना सका | आइये अब दूसरे मिसरे से ये समझें की ग़ालिब ऐसा क्यों कह रहे है | दूसरा मिसरा ऐसा है की 'था' के अलवा कुछ समझना मुश्किल मालूम होता है | सरगश्ता का अर्थ है भटका हुआ या सिरफिरा, खुमार का अर्थ है नशा या किसी के वश में, रुसुम का अर्थ है रस्म या रीती रिवाज़, और कुयूद का अर्थ है कैद में | इस मिसरे का अर्थ ये निकलता है की सरफिरा यहा के रीती रिवाज़ के नशे से बंधा हुआ या उनके कैद में था | अब दोनों मिसरो को जोड़ कर हिंदी का शाब्दिक अर्थ यह निकल कर आता है की -
पत्थर तोड़ने वाला व्यक्ति बिना पत्थर तोड़ने के औज़ार के मर ना सका, वो सरफिरा भी यहाँ के रीती रिवाजों के नशे में कैद था |

अब इस शेर का अर्थ हमें पता चल गया पर इसका कोई मतलब तब तक आपको पता नहीं चलेगा जब तक आप को यह कहानी पता ना हो |

किसी ज़माने में एक पत्थर तोड़ने वाला था जिसका नाम फरहाद था, उसे एक राजकुमारी से इश्क़ हो गया था, जिसका नाम शिरीन था | फरहाद महल के पास जाकर राजकुमारी को देखता रहता, यह बात राजा को पता चल गयी | राजा ने फरहाद को तलब किया, फरहाद से पूछा गया की क्यों तुम महल की ओर देखते रहते हो? उसने कहा की मुझे राजकुमारी से इश्क़ है | राजा ने कहा की तुम अगर सच्चा इश्क़ करते हो यह साबित करो, इसके लिये तुम्हे सामने वाले पहाड़ से एक नहर खोदकर महल तक लानी होगी और नहर में पानी नहीं दूध बहाना होगा | यह सुन फरहाद चल पड़ा नहर खोदने, इधर पीछे से राजा ने राजकुमारी की शादी कर दी | यह खबर जब नहर खोद रहे फरहाद को मिली तो उसका दिल टूट गया और उसने उसी औज़ार से जिस से वो नहर खोद रहा था, अपने सर पर मार कर आत्महत्या कर ली | जिस नहर में दूध बहना था उसमे फरहाद का ख़ून बह रहा था | यहाँ कहानी समाप्त होती है और ग़ालिब शुरू होते है | ग़ालिब कहते है की तेशे बगैर मर ना सका फरहाद (कोहकन ), वो भी इस दुनिया के रीती रिवाज़ो(मौत आने के) में बंधा हुआ था, अगर ऐसा ना होता तो फरहाद तो खबर सुनते ही दिल टूटने से मर जाता, उसे सर पर वार कर के खुद को ख़त्म करने की ज़रूरत ना पड़ती | ग़ालिब के कहने का अर्थ यह है की दुनिया के जो रीती रीवाज़ है जैसे मृत्यु आने का कोई कारण होना चाहिए, कोई दुर्घटना, बीमारी, या आत्महत्या इन रिवाजों के बंधन से फरहाद जैसा आशिक़ भी बच ना सका उसे भी मौत लाने के लिये अपने सर पर वार करना पड़ा | ग़ालिब के इस शे'र की इतनी परतें है की आप जितनी गहराई में जाओगे उतनी परतें और खुलती जाएंगी | किसी ने शायद सही कहा है की ग़ालिब अगर अंग्रेजी में शायरी करते तो शायद दुनिया के सब से महान कवि कहलाते |

~अश्क़ जगदलपुरी

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