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Majrooh Sultanpuri - Ek Shayar aur uski shayari ki kahani

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  मजरूह सुल्तानपुरी एक ऐसा नाम जिसने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को एक से बढ़कर एक गीत नवाज़े। मजरूह सुल्तानपुरी जितने अच्छे गीतकार थे उतने अच्छे शायर भी थे। उनका एक शे'र जो हिंदी उर्दू की दुनिया में बहुत मशहूर है - मैं अकेला ही चला था जानिब-ऐ -मंज़िल मगर  लोग साथ आते गये और कारवां बनता गया  उनका एक और शे'र जो मुझे बहुत पसंद है वो है - देख ज़िन्दाँ से परे रंग-ऐ -चमन जोश-ऐ -बहार  रक़्स करना है तो पांव की ज़ंजीर न देख  वैसे जो शायरी के शौक़ीन है वो तो मजरूह साहब की शायरी और उनके शायरी की दुनिया के योगदान को अच्छी तरह जानते हैं लेकिन जो लोग उन्हें सिर्फ गीतकार के रूप में जानते है उनके लिए एक किताब का लिंक मैं यहाँ दे रहा हूँ।  https://amzn.to/3ac82kW आप मेरी रचनाओं को youtube पर भी देख सकते हैं।  मेरे  youtube channel का लिंक है -  https://bit.ly/348TM8O

नई हिंदी कहानी : मुफ्त के फूल

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एक शाम मैं फूल लेने बाज़ार गया, अक्सर 2-3 दिन में एक बार चले जाया करता हूँ | मैं हमेशा एक ही दुकान से फूल लेता हूँ क्योंकि वहाँ अलग-अलग प्रकार के फूल सही क़ीमत में मिल जाया करते हैं | उस दिन मैने ऐसा ही किया, उस दुक़ान से फूल लिये और कुछ छोटे मोटे समान लेने के लिये आगे बढ़ गया | शाम का समय था अंधेरा हो चला था स्ट्रीट लाइट्स जला दी गयी थी | थोड़ा आगे बढ़ा था की मेरी नज़र एक फूल बेचती हुई बुज़ुर्ग महिला  पर पड़ी, वो एक स्ट्रीट लाइट के नीचे बोरा बिछा कर फूल बेच रही थी | उसके पास बहुत थोड़े से ही फूल थे | प्लास्टिक की छोटी थैलियों में फूल भर कर उसने सामने रख दिये थे, कुल चार ही थैलियां थी | वैसे तो मैं ने फूल खरीद लिये थे पर मुझे उस महिला पर दया आयी | मैं ने सोचा इस महिला से एक थैली फूल खरीद कर उसका कुछ भला कर दिया जाये | मैं उसके पास पहुँचा और उससे पूछा "अम्मा फूल कैसे दिये ? "  "10 रुपये की एक थैली है" मैं ने कहा "ठीक है एक थैली दे दो " यह कह कर मैं ने दस रुपये निकले और उस महिला को दे दिये |    मेरे मन में ये संतोष था क...

क्यों है

ज़िन्दगी दे के हमें सताता क्यों है  मौत देता है तो दे तड़पता क्यों है  फूंकी है जान मिट्टी के जिस्म में तूने ही  फिर दुनिया का हर शख्स मर जाता क्यों है  मै तेरे नशे में ही चूर रहता हूँ  फिर मुझे तू और पिलाता क्यों है  जो जानवर भी ना सलीके के बन पाएंगे  ऐसे लोगों को तू इंसान बनाता क्यों है  तू कहता है शराब बुरी है बहुत  इतनी बुरी है तो बनाता क्यों है  'अश्क़' है तो आँखों से बरस जाता  कम्बख्त दिल में उतर जाता क्यों है 

कोरोना पर एक कविता

सूने रास्ते सूनी गलियां सूने सूने उपवन है  सूने मंदिर सूने मस्जिद सूने सूने आंगन है  किन्तु केवल कुछ दिनों के लिये ये सूनापन है  सर्वोपरि है घर में रहना अनमोल हर जीवन है  लड़ना ही है तो अपनों से क्यों? अपनों के लिये लड़ना होगा  धन, अन्न, दवा, परिश्रम का महादान करना होगा  भूखों की भूख, दुखियो का दुख इस विकट समय हरना होगा  अल्लाह, ईश्वर सब देवो का अब आवाहन करना होगा  ये कर्म भूमि ये देव भूमि जो भारत वर्ष कहलाती है  ये वेद भूमि ये प्राण दायनी जीवन की ज्योत जलाती है  कोरोना से लड़ने वीरों, तुम्हे ये मात्रभूमि बुलाती है  इसकी रक्षा ही परम धर्म है ये भूमि माँ कहलाती है आओ मिलकर हम इस महामारी पर वार करें  सम्मान करें उन वीरों को जो कोरोना संहार करे कठिनाई के दरिया को दृढ़ निश्चय ही से पार करें  दूरी तन की तन से हो पर मन से सबको प्यार करें आपका अश्क़ जगदलपुरी 

चोपड़ा साहब की प्रेम कथा

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चोपड़ा साहब को सेवा निवृत्त हुए 10 साल हो गये, एक बेटा है, विदेश में रहता है | वह एक सरल ह्रदय के मनुष्य है, चेहरे से तो जैसे करुणा टपकती हो, सभी से प्रेम और सौहार्द रखने में विश्वास करते है | कदकाठी में थोड़े गोलमटोल, बाल चांदी की परत चढ़े हुए, शर्ट और पयजामा पहन कर और साथ में एक छाता लेकर ही कही निकलते | चोपड़ा साहब को जो भी देखता उनमे अपने दादा - नाना की झलक देखता | आज की भाषा में कहें तो वो "क्यूट" है | आज उनकी धर्म पत्नी का जन्मदिन है, चोपड़ा साहब सुबह 5 बजे ही उठ गये, नहा धो कर भगवान के सामने अगरबत्ती जला कर तैयार हो गये, स्कूटर निकाली और चल पड़े बाज़ार की ओर, पहले मिश्रा मिष्ठान भंडार से 1 किलो दूध के पेड़े लिये, उनकी पत्नी के पसंदीदा, फिर एक कच्चा नारियल और दो स्ट्रॉ पैक करवाये और आखिर में एक चॉकलेट लेकर वापस चल पड़े | उनकी स्कूटर के ब्रेक एक अनाथालय के सामने लगे, वहा उन्होंने पेड़े बाटें और हॅसते मुस्कुराते बच्चों से विदा लेकर फिर स्कूटर पे सवार हो गये | अब उनका स्कूटर घर से कुछ दूर वाले पार्क में जाकर रुका, वहा वो अपना सामान लेकर एक बेंच की ओर बढे, उस बेंच पर एक लड़का और एक लड़...

इस देश में कई देश रहते है

इस देश में अब कई देश रहते है अपनी अपनी बात सब कहते है  भाषा धर्म जाती प्रान्त के नाम पर झगड़ा है हर गाली देने वाला संविधान को पकड़ा है फिर भी कायर है जो चुप चाप सहते है इस देश में अ...

अँधेरे

पहले अंधेरो को अँधेरे में रखा गया फिर उजालों पर खूब लिखा गया किताबें जो उम्र भर ना सीखा सकी बुरा वक़्त पल भर में सीखा गया हम तरसते रहे जिनके दीद को वो जाने किस किस को मुँह दिखा ...