Majrooh Sultanpuri - Ek Shayar aur uski shayari ki kahani

 


मजरूह सुल्तानपुरी एक ऐसा नाम जिसने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को एक से बढ़कर एक गीत नवाज़े। मजरूह सुल्तानपुरी जितने अच्छे गीतकार थे उतने अच्छे शायर भी थे। उनका एक शे'र जो हिंदी उर्दू की दुनिया में बहुत मशहूर है -


मैं अकेला ही चला था जानिब-ऐ -मंज़िल मगर 

लोग साथ आते गये और कारवां बनता गया 


उनका एक और शे'र जो मुझे बहुत पसंद है वो है -


देख ज़िन्दाँ से परे रंग-ऐ -चमन जोश-ऐ -बहार 

रक़्स करना है तो पांव की ज़ंजीर न देख 


वैसे जो शायरी के शौक़ीन है वो तो मजरूह साहब की शायरी और उनके शायरी की दुनिया के योगदान को अच्छी तरह जानते हैं लेकिन जो लोग उन्हें सिर्फ गीतकार के रूप में जानते है उनके लिए एक किताब का लिंक मैं यहाँ दे रहा हूँ। 

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