कब
एक गांव में एक घर था | उस घर में बाबूलाल अपने 6 बेटों के साथ रहते थे | उनके पड़ोस के घर में पप्पूलाल रहते थे उनके 3 बेटे थे | पप्पूलाल जी का बड़ा बेटा कल्लन अक्सर अपने भाइयो को बेरहमी से मारता पीटता था | अक्सर बाबूलाल पड़ोस में हो रहे लड़ाई झगड़े से व्यथित रहते थे | बाबूलाल के मंझले बेटे छुट्टन की कल्लन से दोस्ती थी | दोनों गहरे मित्र थे | एक शाम कल्लन अपने भाइयो को बुरी तरह पिट रहा था, बाबूलाल से रहा ना गया, उसने अपने बड़े बेटे लल्लन से कहा की जाओ और पप्पूलाल के सभी बेटों से कहो वो हमारे घर आकर रहे, कल्लन को छोड़ कर सभी का यहाँ स्वागत है | इस पर छुट्टन को गुस्सा आगया, उसने बाबूलाल से कहा आप कल्लन के साथ अन्याय कर रहे है, आपको बुलाना है तो कल्लन को भी बुलाये ! बाबूलाल ने छुट्टन को समझाया की वो कल्लन को यहाँ बुलाएंगे तो वो यहाँ भी बाकियों को मरेगा पिटेगा इस से अच्छा है की कल्लन को छोड़ कर बाकियों को बुलाया जाए |ईस पर छुट्टन को गुस्सा आया उसने बाहर ख़डी बाबूलाल की मोटरसाइकिल में आग लगा दी, घर की चीज़े फेंक दी, और नारे लगाने लगा "लेके रहेंगे आज़ादी" | बाबूलाल ने पुलिस को फ़ोन किया, पुलिस ने छुट्टन के कमरे में घुस कर उसकी पिटाई कर दी | छुट्टन ने पुलिस के ऊपर मुकदमा कर दिया की बिना उसकी अनुमति के पुलिस उसके कमरे में घुसी और उसकी पिटाई कर दी | पप्पूलाल ने छुट्टन का समर्थन किया है और कल्लन ने पुलिस के अत्याचार और बाबूलाल के भेदभाव की निंदा की है |
~ अश्क़ जगदलपुरी
नोट - इस कथा के सभी पात्र काल्पनिक है, इस कथा का किसी व्यक्ति, जाती, धर्म, या घटना से समानता संयोग मात्र है |