संदेश

गिरगिट

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मैं गिरगिट मेरा विशिष्ट गुण है प्रतिवेश अनुसार "रंग बदलना" पर हे मानव तुम जब रंग बदलते हो किसी भी प्रतिवेश में कोई भी रंग धारण करते हो मैं गिरगिट होकर भी ये कभी ना कर पाउँगा, इसीलिए हे मानव मैं तुम्हे शाष्टांग दंडवत प्रणाम करता हूँ |

हम आलोचना करेंगे

लूट गये है बाज़ार हम आलोचना करेंगे ठप पड़े है व्यापार हम आलोचना करेंगे आज जो इधर है कल वो उधर होंगे गिरगिटों की है सरकार हम आलोचना करेंगे 5 साल लूटा हमने अब आपकी बारी है आप करना ...

लोकतंत्र का उपहास

मज़ाक बनाया लोकतंत्र का राजनीती की हो रही ऐसी की तैसी है अब किस मुँह से कहें हम के ये दुनिया की सब से बड़ी डेमोक्रेसी है वोट लिया जिसे कोस कोस कर आज उसको साथ बैठाया है शकुनि को भ...

ज़हर बह रहा है

ज़हर बह रहा है पानी में हवा में नवजात ज़हर पी रहे है माँ के स्तनों से खेतोँ में अब आग ही आग है हवा में अब स्मॉग ही स्मॉग है नदी में अब झाग ही झाग है आओ आवाहन करें इसी झाग में डूब मरे...

दिल्ली में - नज़्म

सुना है हवा ख़राब है दिल्ली मे बाकि सब ला जवाब है दिल्ली मे इतनी सिक्योरिटी और इतना ताम झाम कहा के नवाब है दिल्ली मे पतझड़ के मौसम मे झड़ते ही नहीं ऐसे कई गुलाब है दिल्ली मे एक कु...

नारी

पापा ऑफिस से आये तो माँ को भूल गयी प्यार हुआ तो माँ बाप को भूल गयी शादी हुई तो सहेलियों को भूल गयी बच्चे हुए तो पति को भूल गयी बच्चे बड़े हुए तो मुझको भूल गये मैं बूढ़ी हुई तो दुनि...

हमको अब आदत सी हो गयी है -अश्क़ जगदलपुरी

हमको अब आदत सी हो गयी है रास्तो पे गड्ढों की, शराब के अड्डों की, पानी के कमी की, आखों मे नमी की, बिजली के आभाव की, स्वार्थी स्वभाव की संतो के जेल की, नेताओं के बेल की हमको अब आदत सी हो गयी है, शादी पे दहेज़ की, अपनों से परहेज की एसिड से जलने की कलियों को मसलने की फ़ौजी विधवाओं की आतंक के आकाओं की कूड़ेदान मे बच्चियों की और पंखे से लटकी रस्सियों की हमको अब आदत सी हो गयी है देरी से चलती रेलों की भरी हुई जेलों की लोगों से लदी बसों की कटी हुई नसों की मिग 21 के गिरने की जांबाज़ों के मरने की बढ़ते प्रदुषण की और सियासी आरक्षण की हमको अब आदत सी हो गयी है शहीद होते जवानों की टूटते अरमानों की बदबूदार नालों की सरकारी घोटालों की डूबते शहरों की हवस भरे चेहरों की बाबुओं के घमंड की और नेताओं के पाखंड की हमको अब तो आदत सी हो गयी है देश विरोधी नारों की, लम्बी लम्बी कतारों की हिन्दू मुस्लिम दंगों की खादी मे भुजंगो की दशकों चलते मुकदमों की मिडिल क्लास के सदमों की दोपहर मे आराम की और टाट के निचे राम की हमको अब आदत सी हो गयी है ~अश्क़ जगदलपुरी